प्राचीन व ऐतहासिक होडल के समीप स्थित वांसवा -शेषसाई मंदिर में पुत्रदा एकादशी पर्व पर शुक्रवार को हजारों की संख्या में नर नारियों ने दर्शन कर भगवान का आशर््िावाद लिया। शेषसाई मंदिर जो कि इतिहासिक, पौरााणिक, प्राचीन मंदिर है तथा यहां पर विराजमान भगवान विष्णु की शैष शैया पर लक्ष्मी जी द्वारा चरण दबाते हुए की साक्षात प्रतिमा स्थित है। शेषसाई मंदिर का वर्णन ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा में भी आता है तथा ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा करने बाले श्रृदालुओं के यहां पर आने पर भारी भीड़ लगी रहती है। इस मंदिर के साथ पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भक्तों राघव व रामदास प्रत्येक एकादशी पर व्रत रहते थे तथा भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए वह जगन्नाथ जी पैदल जाते थे। एक बार जव वह दर्शन करने के लिए जा रहे थे तो रास्ते में उसके पैरों में छाले पड़ गए तथा वह एक पेड़ के नीचे बैठ कर रोने लगे तथा रोते- रोते उसको नींद ने आ घेरा। भगवान जगन्नाथ ने उसको सपने में दर्शन दे कर कहा कि वह शेषसाई स्थित क्षीर सागर तालाब में मूर्ति के रूप में विराजमान हैं तथा वहां पर उनकी प्रतिमा को निकाल कर एक मंदिर का निर्माण करने पर जया एकादशी को वह स्वंय दर्शन देने के लिए शेषसाई मंदिर में आया करेगें। उक्त किसानों ने अपने सपने के बारे में आ कर गांव में बताने पर गांववासियों द्वारा जब क्षीर सागर में खुदाई की गई तो उसमें से भगवान जगन्नाथ की शेषसईया पर लेटी हुई प्रतिमा जगन्नाथ भगवान के रूप में प्रगट हुई तथा गांववासियों द्वारा क्षीर सागर के पास ही एक मंदिर का निर्माण कर प्रतिमा को वहंा पर स्थापति किया गया। इनको भगवान जगन्नाथ के छोटे भाई लक्ष्मीनारायण के रूप में पूजा जाता है। आज पुत्रदा एकादशी पर ऐसा माना जाता है कि शेषसाई मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा के दर्शन करने से भारी पुण्य का लाभ मिलता है तथा नागरिक को सीधे स्वर्ग की प्राप्ति हेाती है। मंदिर में दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा के हजारों नर नारियों द्वारा सुबह यहंा पर स्थित क्षीर सागर तालाब में नहा कर सुबह चार बजे से मंगला आरती के दर्शन कर दिन भर दर्शन किए गए।