क्षमा का वास्तविक स्वरूप आज समाज को समझना बेहद आवश्यक है। बहुत लोग इसे डर, कमजोरी या समझौते की भाषा समझ लेते हैं, लेकिन असल में क्षमा किसी कायरता का नाम नहीं है उक्त विचार नितिन जैन, संयोजक जैन तीर्थ श्री पार्श्व पद्मावती धाम, पलवल ने व्यक्त किए। । उन्होंने कहा कि क्षमा तभी सच्ची होती है जब हम पूरी शक्ति रखते हुए भी किसी को नुकसान न पहुँचाकर, उसे माफ़ करने का विकल्प चुनते हैं। यही आत्मबल है, यही वीरता है। क्षमा का अर्थ है अपने क्रोध और प्रतिशोध पर नियंत्रण। यह साधारण लोगों का काम नहीं, यह केवल साहसी और मजबूत व्यक्तियों की पहचान है।क्षमावाणी पर्व हमें इसी महान संदेश की याद दिलाता है। यह पर्व केवल औपचारिकता में मच्छामि दुक्कडम कह देने का नाम नहीं है, बल्कि यह आत्मा की गहराई से कटुता और द्वेष को मिटाने का अवसर है। माफी माँगना और माफ़ करना, ये दोनों ही काम बेहद कठिन हैं, और इन्हें करने के लिए अपार साहस चाहिए।